गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

नया साल - २० राज रिफ़ रेजिंग डे

नया साल
नए वर्ष में हर्ष हो,
मंगलमय नव वर्ष हो,
स्वच्छ घर का फर्श हो,
पैसों भरा पर्श हो,
चहरे पर मुस्कान लिए,
दरवाजे पर नर्श हो,
जो कह रही हो सबसे,
नए वर्ष में हर्ष हो
मंगलमय नव वर्ष हो !
२० राज रिफ़ रेजिंग डे
पहली जनवरी १९८१
मौसम में रंगीनी स्वच्छ था गगन,
चेहरों पर खुशी थी दिल था मगन,
राज रिफ़ की नयी यूनिट उदय हो रही थी,
उमंग और उत्साह में कहीं कमी नहीं थी,
सूरज पूर्व में जैसे ही नजर आया,
२० राज रिफ़ का ध्वज लहर लहर लहराया !
ध्वज के नीचे वहां खड़े थे तीन प्रमुख वीर,
ले जनरल ए एम सेठना (कर्नल आफ दी रेजिमेंट)
ब्रिगेडियर धवन और कर्नल सतवीर !
उस अवसर पर थे कुछ अधिकारी जे सी ओ और जवान,
'हम सब हैं बीस राज रिफ़ के है हमको अभिमान ',
हमारे दिलों में खुशी के फूल खिल रहे थे,
वहीं पाकिस्तानियों की छावनी बंकर डर से हिल रहे थे !
जवान आते रहे कारवां बनता गया
२० राज रिफ़ ने बनाया अपना मंदिर नया !
पहली पोस्टिंग यूनिट की फैजाबाद आया,
२५ साल बाद सिल्वर जुबली यूनिट ने वहीं जाके मनाया !
प्रभु के आगे नतमस्तक हैं, है उसी की माया,
३० साल बाद यूनिट ने फिर स्टेशन दिल्ली पाया !
अब जब हम यूनिट के कारनामों पर जब नजर डालते हैं,
हर जवान के सीने पर वीरता के मैडल नजर आते हैं !
सौर्य चक्र तीन, कृति चक्रा, युद्ध सेना मेडल, वी एस एम एक एक,
सेनाध्यक्ष प्रशस्ति पत्र यूनिट ने लिए अनेक !
सु. में. रनसिंह कमांड कर रहे राजिव कुमार,
ये गुलशन फूले फले और लगे फल बेशुमार,
और लगे फल बेशुमार देखो गगन भी हर्षाया,
की यूनिट ने दूसरा सीओ भी १७ राज रिफ़ से पाया !
कहे रावत कविराय, पूर्व सैनिक खुशी से झूम रहे हैं,
मिल रहे गले एक दूजे के यूनिट के गौरव को चूम रहे हैं !
जय माता जी की - जय श्री राम

मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

०७ दिसंबर २०१० - चलो अब चलते हैं

चलो अब चलते हैं राह बदलते हैं,
वक्त खडा है दरवाजे पर अब वापिस चलते हैं !
पहले चले थे पश्चिम को अब पूर्व को चलते हैं,
साथी मिले थे राहों में अब उनसे बिछुड़ते हैं,
पीछे छूट गए थे जो जा उनसे मिलते हैं,
चलो अब चलते हैं, राह बदलते हैं !
यहाँ सर्दी पर चढी जवानी है,
बर्फ बना सब पानी है,
खुली सड़क पर कोई न चलता,
फिसल पड़े तो हानि है !
पेड़ों के पत्ते दूर गिरे, क्या फिर वे मिलने पाएंगे,
हम तो इंसान हैं भाई लौट लौट कर आएँगे !
इसी लिए अब विदा करो, फिर जल्दी मिलते हैं
चलो अब हम चलते हैं, राह बदलते हैं !
हरेंद्रसिंह रावत, म्यालविल, न्यू यार्क, अमेरिका - ८.१३ ए.एम

रविवार, 5 दिसंबर 2010

कविता शायरी

आप डाक्टर दिल के हो लोगों के दिल चुराते हो,
उन दिलों में एक दिल मेरा भी है, क्या साथ लाए हो !

सांझ आ रही है सुबह भी होगी,
सांझ सावली है सुबह कैसी होगी !

दिल चाहता है तुम्हे सीने से लगा दूं,
तुम्हारे झील जैसी आँखों में अपने को छिपा दूं,
लेकिन मैंने जैसे ही जम्प मारा तुमने आँखें बंद कर दी !

दो बुजुर्ग एक होटल में खाना खा रहे थे,
एक मर्द एक नारी बीच बीच में मुस्करा रहे थे,
मर्द खा रहा था नारी पंखा झल रही थी,
मर्द पंखा झुलाने लगा जब नारी खा रही थी,
इस प्रेम लीला को देख कर होटल मालिक से नहीं रहा गया,
उसने आकर नारी से कहा,
"इस उम्र में आपकी प्रेम लीला देखकर मैं तो शर्मा ही गया,
रास लीला का तरीका लगता है बिलकुल नया,
नारी बोली, "आपके विचार तो नेक हैं,
पर असल में हमारा प्यार वार कुछ नहीं है
केवल दांतों का सेट एक है " !

तुम चलती हो दिल हिलता है,
तुम मुस्कराती हो फूल खिलता है,
सोचता हूँ जब तुम हंसोंगी,
किस किस के गले में फांसी का फंदा कसोगी !

वो कहते हैं हुस्न परिन्दा है,
उड़ता है एक डाली से दूसरी पर डेरा जमाता है,
लेकिन वो झूठ कहते हैं,
तुम्हारे मुखड़े का हुस्न तो लौट लौट कर
वापिस तुम्हारे ही मुखड़े पर आता है !

मैं जा रहा था तुम आ रही थी,
ओंठों ओंठों में कुछ गुन गुना रही थी,
अचानक हम दोनों की टक्कर हो गयी,
मैं गिर गया आम के पेड़ से कोयल बोली,
बधाई दिल की मुराद पूरी हो गयी !

ओ आए घर अपने खुदा की कुदरत है
हम कभी उनको कभी अपने घर को देखते हैं !

एक दिन वो बोली , अजी सुनते हो,
आजकल खींचे खींचे से रहते हो,
कहीं मेरे हुस्न से तो नहीं जलते हो,
ये बताओ मुझे कितना प्यार करते हो,
हमने कहा,
तस्वीर तुम्हारी दिल में ऐसी बसी है,
जैसे भैस अधखुले दरवाजे में फंसी है !

वह दवा कहाँ से लाऊँ जो तेरी नींद उड़ा दे,
वहा हुस्न कहाँ से लाऊँ तुझे पड़ोसन से लड़ा दे !

गुलशन उजाड़ने को एक ही उल्लू काफी है,
जहां साक साक पर उल्लू हो हाल ये गुलशन क्या होगा ?

सरसों का खेत पीला परिधान, नारी ने झलक दिखाई,
मैंने फ़ौरन से एक रंगीन फोटो खिचाई,
कमाल हो गया नारी कहीं आस पास नहीं,
सरसों का खेत खेत में भैंस नजर आई !

शनिवार, 6 नवंबर 2010

दिवाली मनाई

दिवाली मनाई हर एक ने अपने ढंग से,
किसी ने दीपों से किसी ने जाम या भंग से !
किसी ने तीन पत्तियों में किस्मत अजमाई,
किसी की जेब खाली किसी की हुई कमाई !
लुटेरों की कोठियां जगमगा रही थी,
झोपड़ियों में जुगनुओं की बरात आ रही थी !
नोर्थ, साऊथ ब्लाक और राष्ट्र पति भवन
दीपों की जगमगाहट छू रहा था गगन !
कामन वेल्थ गेमों में जिन्होंने लूटा माल,
सरकार हुई सजग पर जनता हुई कंगाल,
लुटेरों के बंगलों में जाम पे जाम चढ़ रही थी,
घुंघुरुओं की छम छम से भीड़ बढ़ रही थी !
कलमाड़ी की कोठी इन्द्रपुरी लग रही थी,
रिद्धि सिद्धि आकर यहीं पानी भर रही थी,
इसके चमचे शराब में नहा रहे थे,
हर पैग में हजार का नोट डूबा रहे थे !
गरीब बेचारे महंगाई का रोना रो रहे थे,
बच्चे दिवाली पर भूखे पेट ही सो रहे थे !
इस तरह देश में सबने दिवाली मनाई,
"मैं किस किस के घर बरसी",
लक्ष्मी जी ने यह बात हमें नहीं बताई !!

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

खोदा पहाड़ निकली चुहिया

गेम ख़तम हो गए, औरग्नाइजर सो गए,
कुछ लूटे हुए जुट गए, कचरे के ढेर में,
ढूँढने भागते चोर की लंगोटी पकड़ने,
पुलिस वाले जुट गए
लुटने वालों को जकड़ने,
कमाने वाले भाग गए,
रह गए गवांने वाले,
चोर चोर मौसेरे भाई,
कह गए कमाने वाले !
सत्तर हजार करोड़ खर्च हुए,
कुछ ठेकेदार इंजिनियर कमा गए,
बाकी प्रबंधकों के उदर समां गए !
कुछ मजदूर मर गए,
कुछ हो गए अपंग,
सरकारी एजेंसियां ढूंढ रही,
कचरे में चोर के रंग !
असली चोर तो निकल गए,
चोर दरवाजे से,
इन्क्वारी वाले आ रहे हैं,
शोर शराबे से !
आयोग बैठेगा, इन्क्वारियाँ होंगी,
कागजों में की जाएगी फिर हेरा फेरी,
साल भर में रिपोर्ट बनकर आएगी,
सब चोरों को बेदाग़ कर जाएगी !
"सब कुछ ठीक है किसी ने गलत नहीँ किया !"
सत्तर हजार करोड़ को, खोदा पहाड़ निकली चुहिया !

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

आज का नेता

आज का नेता पक्का पपीता,
जब चाहो तोड़ के ले जावो,
कच्चा है तो बाहर फेंक दो
पक्का है तो खा जावो !
अगर है एम एल ए एम पी
खरीद के इनको ले जावो,
मुख्य मंत्री बनने वाला
इन्हीं पर बोली लगावो !
ये आया राम और गया राम हैं
अलग ही पहिचान बनाते हैं,
कच्छुवा जैसी चाल है इनकी ,
मेढकी छलांग लगाते हैं !
गिरगिट जैसे रंग बदलते,
बन्दर जैसी घुड़की !
पार्टी बदल देते हैं फ़ौरन
सरकार जैसे लुढकी !
वोट माँगते जब ये नेता,
निरा गऊ बन जाते हैं,
चुनाव जीतने पर भय्या
शेर की दहाड़ लगाते हैं !
सुबह शाम ही झूठ बोलते,
है न इनका दीन ईमान !
पूरा बकरा उदरग्रस्त कर
फिर लेते हैं प्रभु का नाम !
इन दुष्टों से बचकर रहना,
कह गए तुलसी दास,
नया उनकी डूबा गए ये
जिनके रहते हैं ये पास !

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

चंचल मन

उड़ जाता है बादल की तरह,
रगं बदलता है,
कभी हिमालय की चोटी पर
स्वप्न दिखाता है,
खोल के यादों की खिड़की,
याद दिलाता बचपन,
ये मेरा चंचल मन ! १
कभी कविता की पंक्ती बनकर,
मधुर गीतों की धुन,
कहता है क्यों है बेचैन,
इन गीतों को सुन,
ये मेरा चंचल मन ! २
कभी नदिया की धारा बन कर,
कल कल में खो जाता है,
सुबह सुबह सूरज की लाली,
खिले फूल ये लाल गुलाबी,
भंवरा बनकर इन्हें सताता,
गुन गुन कर सबको भरमाता !
भटकता रहता है वन वन,
ये मेरा चंचल मन ! ३