बुधवार, 2 मार्च 2011

मेरे गाँव का आम का पेड़

है खड़ा दक्षिण दिशा में गाँव के आम का एक पेड़, सीने छिपाए बिसरी यादें ढेर, सदियों से इस रूप में, सर्दी वर्षा धूप में, कहता है हम सभी से, मैं ही हूँ प्रत्यक्ष दर्शी गवाह बनकर, यह बताने कौन था पूर्वज तुम्हारा आया था इस गाँव में बैठा मेरी छाँव में ! मैं था बचपन सीढ़ियों में चढ़ता हुआ, योवन की तरफ पहला कदम धरता हुआ, था चारों तरफ घना जंगल, जंगली जानवरों का दंगल, शेर भालू और बन्दर ! और था मैं उनको लुटाता पक्के रसीले आम बिना कोई दाम, खग मृग जो भी शरण में आता, सुख संतोष पाता ! मेहताबसिंह पहला मानव, मेरे नजदीक आया, स्वागत में मैंने दी उसे ठंडी छाया ! उसने डाडा गाँव बसाया, पुत्र रूप में पांच रत्न पाया, है पूरब में सेमल का पेड़, होगा दाई सौ साल पुराना ! है खडा प्रहरी बनकर क्या इंसान ने इसको पहिचाना ? हम दोनों एक साथ पैदा हुए, प्रत्यक्ष दर्शी हैं उन घटनाओं के जो कुछ भी इस गाँव में हुए ! पीढी दर पीढी आदमी आते रहे, जाते रहे ! हर एक ने मेरी छाया में विश्राम किया ! मैंने भी उन्हें बच्चों जैसा प्यार दुलार दिया ! बच्चा बुढा और जवान, मैंने इन्हें फल दिया, लकड़ी और छाया दी अपना सीना तान ! बदले में मेरे ऊपर पत्थरों की वर्षा होती है ! मैं शांत खडा सहन करता हूँ पर आत्मा रोती है ! सोचता हूँ संत और परमारथ करने वाले, समाज द्वारा ऐसे ही प्रताड़ित किए जाते हैं, अपने ही द्वारा पोषित मानव कयों अपनों को ही सताते हैं ! आज जब पीछे नजर जाती है, भूली बिसरी खट्टी मिट्टी बातें याद आती हैं ! इस गाँव की वंशावली फूलती फलती रही, आत्मा खुश होती कुछ अंदाजा नहीं ! सभी ने बचपन मेरे आँगन में बिताया ! कच्चे पक्के फल उन्हें खिलाया ! अब दाई सौ साल के लगभग उम्र होगई, बुढापा आगया जवानी खोगई ! मैंने इन आँखों से देखा जब गढ़वाल पर जुल्मी गोरखों ने मार काट मचाई, कत्ले आम किया शैतानों को महिला, बच्चे और बूढों पर भी दया नहीं आई ! १८१५ ई० में अंग्रेजों ने गोरखों को भगाया, हमारा आधा गढ़वाल तब से ब्रिटिश गढ़वाल कहलाया ! १५ अगस्त १९४७ की थी अंधेरी रात, दो सौ सालों बाद यह भारत हुआ था आजाद ! यह भारत हुआ था आजाद देश ने अपनी सरकार बनाई, छुट भय्या नेताओं ने अपनी दुकान सजाई ! कहे हरेन्द्र रावत यह आम का पेड़ निराला ! ढाई सौ साल जन्म दिन पर आम के गले में डालो माला ! हरेंद्रसिंह रावत - द्वारका दिल्ली