शनिवार, 6 नवंबर 2010

दिवाली मनाई

दिवाली मनाई हर एक ने अपने ढंग से,
किसी ने दीपों से किसी ने जाम या भंग से !
किसी ने तीन पत्तियों में किस्मत अजमाई,
किसी की जेब खाली किसी की हुई कमाई !
लुटेरों की कोठियां जगमगा रही थी,
झोपड़ियों में जुगनुओं की बरात आ रही थी !
नोर्थ, साऊथ ब्लाक और राष्ट्र पति भवन
दीपों की जगमगाहट छू रहा था गगन !
कामन वेल्थ गेमों में जिन्होंने लूटा माल,
सरकार हुई सजग पर जनता हुई कंगाल,
लुटेरों के बंगलों में जाम पे जाम चढ़ रही थी,
घुंघुरुओं की छम छम से भीड़ बढ़ रही थी !
कलमाड़ी की कोठी इन्द्रपुरी लग रही थी,
रिद्धि सिद्धि आकर यहीं पानी भर रही थी,
इसके चमचे शराब में नहा रहे थे,
हर पैग में हजार का नोट डूबा रहे थे !
गरीब बेचारे महंगाई का रोना रो रहे थे,
बच्चे दिवाली पर भूखे पेट ही सो रहे थे !
इस तरह देश में सबने दिवाली मनाई,
"मैं किस किस के घर बरसी",
लक्ष्मी जी ने यह बात हमें नहीं बताई !!