गुरुवार, 23 सितंबर 2010

चंचल मन

उड़ जाता है बादल की तरह,
रगं बदलता है,
कभी हिमालय की चोटी पर
स्वप्न दिखाता है,
खोल के यादों की खिड़की,
याद दिलाता बचपन,
ये मेरा चंचल मन ! १
कभी कविता की पंक्ती बनकर,
मधुर गीतों की धुन,
कहता है क्यों है बेचैन,
इन गीतों को सुन,
ये मेरा चंचल मन ! २
कभी नदिया की धारा बन कर,
कल कल में खो जाता है,
सुबह सुबह सूरज की लाली,
खिले फूल ये लाल गुलाबी,
भंवरा बनकर इन्हें सताता,
गुन गुन कर सबको भरमाता !
भटकता रहता है वन वन,
ये मेरा चंचल मन ! ३