शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

खोदा पहाड़ निकली चुहिया

गेम ख़तम हो गए, औरग्नाइजर सो गए,
कुछ लूटे हुए जुट गए, कचरे के ढेर में,
ढूँढने भागते चोर की लंगोटी पकड़ने,
पुलिस वाले जुट गए
लुटने वालों को जकड़ने,
कमाने वाले भाग गए,
रह गए गवांने वाले,
चोर चोर मौसेरे भाई,
कह गए कमाने वाले !
सत्तर हजार करोड़ खर्च हुए,
कुछ ठेकेदार इंजिनियर कमा गए,
बाकी प्रबंधकों के उदर समां गए !
कुछ मजदूर मर गए,
कुछ हो गए अपंग,
सरकारी एजेंसियां ढूंढ रही,
कचरे में चोर के रंग !
असली चोर तो निकल गए,
चोर दरवाजे से,
इन्क्वारी वाले आ रहे हैं,
शोर शराबे से !
आयोग बैठेगा, इन्क्वारियाँ होंगी,
कागजों में की जाएगी फिर हेरा फेरी,
साल भर में रिपोर्ट बनकर आएगी,
सब चोरों को बेदाग़ कर जाएगी !
"सब कुछ ठीक है किसी ने गलत नहीँ किया !"
सत्तर हजार करोड़ को, खोदा पहाड़ निकली चुहिया !

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

आज का नेता

आज का नेता पक्का पपीता,
जब चाहो तोड़ के ले जावो,
कच्चा है तो बाहर फेंक दो
पक्का है तो खा जावो !
अगर है एम एल ए एम पी
खरीद के इनको ले जावो,
मुख्य मंत्री बनने वाला
इन्हीं पर बोली लगावो !
ये आया राम और गया राम हैं
अलग ही पहिचान बनाते हैं,
कच्छुवा जैसी चाल है इनकी ,
मेढकी छलांग लगाते हैं !
गिरगिट जैसे रंग बदलते,
बन्दर जैसी घुड़की !
पार्टी बदल देते हैं फ़ौरन
सरकार जैसे लुढकी !
वोट माँगते जब ये नेता,
निरा गऊ बन जाते हैं,
चुनाव जीतने पर भय्या
शेर की दहाड़ लगाते हैं !
सुबह शाम ही झूठ बोलते,
है न इनका दीन ईमान !
पूरा बकरा उदरग्रस्त कर
फिर लेते हैं प्रभु का नाम !
इन दुष्टों से बचकर रहना,
कह गए तुलसी दास,
नया उनकी डूबा गए ये
जिनके रहते हैं ये पास !