मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

०७ दिसंबर २०१० - चलो अब चलते हैं

चलो अब चलते हैं राह बदलते हैं,
वक्त खडा है दरवाजे पर अब वापिस चलते हैं !
पहले चले थे पश्चिम को अब पूर्व को चलते हैं,
साथी मिले थे राहों में अब उनसे बिछुड़ते हैं,
पीछे छूट गए थे जो जा उनसे मिलते हैं,
चलो अब चलते हैं, राह बदलते हैं !
यहाँ सर्दी पर चढी जवानी है,
बर्फ बना सब पानी है,
खुली सड़क पर कोई न चलता,
फिसल पड़े तो हानि है !
पेड़ों के पत्ते दूर गिरे, क्या फिर वे मिलने पाएंगे,
हम तो इंसान हैं भाई लौट लौट कर आएँगे !
इसी लिए अब विदा करो, फिर जल्दी मिलते हैं
चलो अब हम चलते हैं, राह बदलते हैं !
हरेंद्रसिंह रावत, म्यालविल, न्यू यार्क, अमेरिका - ८.१३ ए.एम

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