रविवार, 10 अप्रैल 2011

यादों के झरोखों से - प्रिय भाई मनोहरसिंह की याद में

हे भाई मनोहर बता क्या हमारी खता, कुछ कहे ही बिना तू कहाँ चल दिया ? न कोई गिला न शिकवा किया, चुपके से भय्या कहाँ खो गया ? तुझे क्या पता क्या हमारी दशा, हम बेहोश हैं ये दर्द का नशा, तू छोटा था मुझसे पर आगे रहा, रुक रुक के चल मैंने तुझसे कहा, जहां तो जरूरत थी चलने को आगे तेरे साथ भय्या हम भी तो भागे, पर यहाँ तैने ऐसी छलांग लगाई , किधर गया कुछ समझ में आई, तुझे क्या पता क्या हमारी ब्यथा, कुछ तो बताता हमारी खता, कुछ कहे ही बिना तू कहाँ चल दिया ? तेरे जाने से हमको धक्का लगा, क्यों किया भय्या तुने हमसे दगा आँखों में आंसू टपकते रहे, हर जख्म सीने पे सहते रहे, लेकिन भय्या, जो पीड़ा तुमने हमको दी, चुपके से गया आह तक न की ! ये जख्म इस जन्म में भर न पाएगा, लगता ये तो अब साथ ही जाएगा (१०/1997)

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