चरण कमल जहां रघुनन्दन के वहीं बैठ निवास करूँ !
पार ब्रह्म परमेश्वर वे हैं सदा उन्हीं का ध्यान करूँ,
सरयू की जल धारा में मैं परम ब्रह्म का गान करूँ !
ये मेरी इच्छा है भगवन जब tak मैं यह सांश भरूँ,
चरण कमल जहां रघुनंदन के वहीं बैठ निवास करूँ ! १
ब्रह्मा विष्णु महेश जहां नित झुक झुक शीश नवाते हैं,
वेद पूराणों में खुद ही ये महा विष्णु कहलाते हैं,
नील गगन में चाँद और तारे नव आभा बिखराते हैं,
सूरज रथ में बैठ के अपने स्वर्ण किरण वरसाते हैं,
हे पुरुषोतम राम सदा मैं दर पे तेरे पड़ा रहूँ,
चरण कमल रघुनन्दन के वहीं बैठ निवास करूँ २
नारद की वीणा के स्वर भी जिससे नेह लगाते हैं,
पापी भी जिस राम नाम से भवसागर तर जाते हैं,
शेषनाग भी लखन रूप में जिनके अनुज कहाते हैं,
वही नर नारायण श्री राम दशरथ के राज दुलारे हैं !
अर्द्धांगनी जिनकी जनक सुता उन चरणों के मैं पास रहूँ,
चरण कमल जहां रघुनन्दन के वहीं बैठ निवास करूँ !